ऑपरेटिंग सिस्टम का परिचय | Introduction to Operating System
- 1- ऑपरेटिंग सिस्टम क्या हैं? | What is Operating System?
- 2- ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता क्या हैं? | What is the Need for Operating System?
- 3- ऑपरेटिंग सिस्टम की विशेषताएं | Characterstics of Operating System
- 4- ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख कार्य | Functions of an Operating System
- 5- कमांड लाइन इंटरफ़ेस एवं ग्राफिकल यूजर इंटरफेस | Command Line Interface & Graphical User Interface
- 6- ऑपरेटिंग सिस्टम के विभिन्न प्रकार | Various types of Operating System
ऑपरेटिंग सिस्टम क्या हैं? | What is Operating System?
ऑपरेटिंग सिस्टम एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है, जो कम्प्यूटर सिस्टम के हार्डवेयर रिसोर्सेस, जैसे-मैमोरी, प्रोसेसर तथा इनपुट-आउटपुट डिवाइसेस को व्यवस्थित करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम, कम्प्यूटर सिस्टम के प्रत्येक रिसोर्स की स्थिति का लेखा - जोखा रखता है तथा यह निर्णय भी लेता है कि किसका कब और कितनी देर के लिए कम्प्यूटर रिसोर्स पर नियंत्रण होगा। एक कम्प्यूटर सिस्टम के मुख्य रूप से चार घटक हैं:-
▷ कंप्युटर उपयोगकर्ता (Computer User)
▷ एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)
▷ ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)
▷ हार्डवेयर (Hardware)
ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) वह सॉफ्टवेयर है जो कंप्यूटर हार्डवेयर और उपयोगकर्ता के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करता है। अन्य एप्लीकेशन प्रोग्राम चलाने के लिए प्रत्येक कंप्यूटर सिस्टम में ऑपरेटिंग सिस्टम होना आवश्यक है। ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर पर चलने वाला सबसे महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर है। यह कंप्यूटर की मेमोरी और प्रक्रियाओं के साथ-साथ इसके सभी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का प्रबंधन करता है। यह आपको कंप्यूटर की भाषा बोलने का तरीका जाने बिना कंप्यूटर के साथ संवाद करने की भी अनुमति देता है। ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना उपयोगकर्ता के लिए किसी भी कंप्यूटर या मोबाइल डिवाइस का उपयोग करना संभव नहीं है।
ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता क्या हैं? | What is the Need for Operating System?
ऑपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर के बीच सेतु (Bridge) का कार्य करता है। कम्प्यूटर हार्डवेयर जैसे की-बोर्ड, मॉनीटर, सी.पी.यू इत्यादि के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम सम्बंध स्थापित करता है एवं इन्हें आपस में कार्य करने हेतु दिशा निर्देश देता है। साथ ही उपयोगकर्ता (User) को विभिन्न एप्लिकेशन प्रोग्राम चलाने हेतु सहायता प्रदान करता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के कई अन्य उपयोगी विभाग होते है जिनके सुपुर्द कई काम केंद्रीय प्रोसेसर द्वारा किए जाते हैं। उदाहरण के लिए प्रिटिंग का कोई कार्य किया जाना है तो केंद्रीय प्रोसेसर आवश्यक आदेश देकर वह कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम पर छोड देता है और वह स्वयं अगला कार्य करने लगता है। इसके अतिरिक्त फाइल को पुनः नाम देना, डायरेक्ट्री की विषय सूची बदलना, डायरेक्ट्री बदलना आदि कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा किए जाते है। एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर जैसे इंटरनेट ब्राउजर, एमएस ऑफिस, गेम्स, म्यूजिक, आदि एप्लिकेशन को चलाने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) की आवश्यकता होती है।
ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर हार्डवेयर और उपयोगकर्ता (एंड-यूज़र) के बीच इंटरफ़ेस का कार्य करता है। डेटा प्रोसेसिंग, एप्लिकेशन प्रोग्राम चलाना, फ़ाइल प्रबंधन (File Management) और मेमोरी (Memory Management) को संभालना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) द्वारा ही किए जाते हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम की विशेषताएं | Characterstics of Operating System
ऑपरेटिंग सिस्टम की प्रमुख विशेषताएं हैं :
⇨ मेमोरी प्रबंधन (Memory Management)
⇨ मल्टी प्रोग्रामिंग (Multiprograming)
⇨ मल्टी प्रोसेसिंग (Multiprocessing)
⇨ मल्टी टास्किंग (Multitasking)
⇨ रियल टाइम (Realtime)
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख कार्य | Functions of an Operating System
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
⇨ प्रोसेस मैनेजमेंट (Process Management)
⇨ मेमोरी मैनैजमैंट (Memory Management)
⇨ फाइल मैंनेजमेंट (File Management)
⇨ इनपुट / आउपुट सिस्टम मैनेजमेंट (Input / Output Management)
⇨ सेकण्डरी स्टोरेज मैंनेजमेंट (Secondary Storage Management)
प्रोसेस मैनेजमेंट (Process Management)
जब भी कोई प्रोग्राम एक्जक्यूट कर रहा होता है, तो उस प्रोग्राम को प्रोसेस कहा जाता है। किसी कार्य को पूरा करने के लिए प्रोसेस को निश्चित रिसोर्सेस की आवश्यकता होती है। रिसोर्सेस के अन्तर्गत सी.पी.यू का टाइम, मेमोरी,फाइल्स और इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस आते हैं। ये रिसोर्सेस किसी भी प्रोसेस को ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा तब एलोकेट किए जाते हैं, जब प्रोसेस रन कर रहा होता है। प्रोसेस मैनेजमेंट के संर्दभ में ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है - यूजर और सिस्टम प्रोसेसेस क्रिएट तथा डिलीट करना, प्रोसेसेस को ससपेन्ड और रिज्यूम करना, प्रोसेस कम्यूनिकेशन के लिए मेकेनिज्म प्रदान करना, प्रोसेस सिनक्रोनाइजेशन के लिए मेकेमिज्म प्रदान करना, डेडलॉक हैन्डलिंग के लिए मेकेनिज्म प्रदान करना।
मेमोरी मैनैजमैंट (Memory Management)
किसी भी आधुनिक कम्प्यूटर सिस्टम में किसी भी ऑपरेशन को सम्पादित करने में मेमोरी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है; क्योंकि मेन मेमोरी ही वह जगह है, जहा से CPU और I/O डिवाइसेस डेटा (Data) को तेजी से एक्सेस कर सकते हैं। जब प्रोग्रोम एक्जक्यूट करता है, तो उस प्रोग्राम इन्सट्रक्शन्स और डेटा को मेन-मेमोरी से एक्सेस करता है अन्त मे जब प्रोग्राम खत्म (Terminate) होता है, तो मेन-मेमोरी का स्पेस खाली हो जाता है, जो अगले प्रोग्राम के लिए उपलब्ध होता है। अतः उसमें अगले प्रोग्राम को लोड कर एक्सक्यूट (Execute) किया जा सकता है। CPU का अधिकतम उपयोग करने के लिए मेमोरी में एक साथ एक से अधिक प्रोग्राम्स को स्टोर किया जाता है। इसके लिए विभिन्न मैनेजमेंट टेक्नीक का प्रयोग किया जाता। मेमोरी मैनेजमेंट के सदंर्भ में ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी है-
1- वर्तमान में मेमोरी का कौन सा हिस्सा किस प्रोसेस द्वारा उपयोग हो रहा है।
2- मेमोरी स्पेस उपल्ब्ध होने पर यह निर्णय लेना कि मेमोरी में किस प्रोसेस को लोड किया जाएगा।
3- आवश्यकतानुसार मेमोरी स्पेस को एलोकेट और डिएलोकेट करना।
फाइल मैंनेजमेंट (File Management)
फाइल मैनेजमेंट ऑपरेटिंग सिस्टम का सामान्यतः दिखाई देने वाला कम्पोनेन्ट है। फाइल सम्बन्धित इनफार्मेशन का एक कलेक्शन है, जो इसके बनाने वाले द्वारा परिभाषित किया जाता है। प्रत्येक फाइल जो सेकेण्डरी स्टोरेज डिवाइस में स्टोर की जाती है, उसका कुछ नाम होता है, जिस नाम से उसे निर्दिष्ट किया जाता है। प्रत्येक फाइल सेकण्डरी स्टोरेज डिवाइस में किसी डाइरेक्ट्री के अधीन स्टोर की जाती है। प्रत्येक फाइल की अपनी प्रॉपर्टीज अर्थात एट्रीब्यूट्स होती है। फाइल मैनेजमेंट के सन्दर्भ में ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी है-
⇨ फाइलों को क्रिएट तथा डिलीट करना।
⇨ डायरेक्ट्रीज को क्रिएट तथा डिलीट करना।
⇨ फाइल्स तथा डायरेक्ट्रीज के मैनिपुलेशन को समर्थन करना।
⇨ फाइलों को सेकेण्डरी स्टोरेज पर मैप करना।
⇨ फाइलों के बैकअप का समर्थन करना।
इनपुट / आउपुट मैनेजमेंट (Input / Output Management)
इनपुट / आउपुट मैनेजमेंट (Input / Output Management) ऑपरेटिंग सिस्टम का महत्वपूर्ण कार्य है, इसके द्वारा विभिन्न डिवाइस जैसे माउस, कीबोर्ड, टचपैड, डिस्क ड्राइव, डिस्प्ले एडेप्टर, यूएसबी डिवाइस, मॉनीटर, प्रिंटर आदि को कार्य करने के लिए प्रबंधित (मैनेज) किया जाता है। यह कंप्यूटर और उसके बाह्य उपकरणों के बीच डेटा ट्रांसफर के का कार्य करता है।
इनपुट/आउटपुट मेनेजमेंट के प्रमुख कार्य सीपीयू और मेमोरी से डेटा ट्रांसफर करना, I/O डिवाइस से डेटा ट्रांसफर करना, प्रोसेसर द्वारा I/O उपकरणों के उपयोग का प्रबंधन करना, प्रोसेसिंग के के लिए I/O उपकरणों तक उनकी पहुंच बनाना, आदि कार्य होते हैं। इसमें विभिन्न डिवाइस ड्राइवर, जो ऑपरेटिंग सिस्टम को किसी विशेष हार्डवेयर डिवाइस के साथ संचार करने में सक्षम बनाते हैं। इनपुट/आउटपुट शेड्यूलर - जो डेटा को स्टोर करते हैं एवं पेरिफेरल डिवाइस में डाटा ट्रांसफर करते हैं।
सेकण्डरी स्टोरेज मैंनेजमेंट (Secondary Storage Management)
चूँकि मेन-मेमोरी का साइज इतना बड़ा नहीं होता है कि वह सभी डेटा और प्रोग्राम को स्टोर कर सके, साथ ही यह वोलेटाइल होती है । वोलेटाइल मेमोरी वह मेमोरी होती है, जिसमें स्टोर किए गए डेटा और प्रोग्राम पावर के गायब होने की स्थिती में नष्ट हो जाते हैं। अतः कम्प्यूटर सिस्टम में मेन-मेमोरी, स्टोर्ड डेटा और प्रोग्राम को स्थायी रूप से स्टोर करने के लिए सेकेण्डरी स्टोरेज का होना आवश्यक होता है। डिस्क मैनेजमेंट के संर्दभ में ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं।
⇨ डिस्क के फ्री-स्पेस को मैनेज करने के लिए ।
⇨ स्टोरेज स्पेस को एलोकेट करने के लिए ।
⇨ डिस्क शिड्युलिंग के लिए।
कमांड लाइन इंटरफ़ेस एवं ग्राफिकल यूजर इंटरफेस | Command Line Interface & Graphical User Interface
उपयोगकर्ताओं के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम को दो भागो मे विभाजित किया गया है ।
⇨ एकल उपयोगकर्ता (सिंगल यूजर - Single User)
⇨ बहुल उपयोगकर्ता (मल्टी यूजर - Multi User)
इंटरफेस के आधार पर भी इसे दो भागो मे विभाजित किया गया है ।
⇨ कैरेक्टर यूजर इंटरफेस (Character User Interface) / कमांड लाइन इंटरफ़ेस (Command Line Interface)
⇨ ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (Graphical User Interface)
एकल उपयोगकर्ता (सिंगल यूजर - Single User)
एकल उपयोगकर्ता (सिंगल यूजर) ऑपरेटिंग सिस्टम वह ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसमें एक समय में केवल एक उपयोगकर्ता काम कर सकता है। सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम केवल एक उपयोगकर्ता (सिंगल यूजर) द्वारा एक कंप्यूटर पर उपयोग की जाने वाली सुविधाएं प्रदाय करता है, लेकिन इनमें एक से अधिक प्रोफाइल का उपयोग किया जा सकता है। इंटरेक्शन के लिए सिंगल कीबोर्ड और सिंगल मॉनिटर का इस्तेमाल किया जाता है। एकल उपयोगकर्ता ऑपरेटिंग सिस्टम का सबसे सामान्य उदाहरण एक ऐसा सिस्टम है जो सामान्यतः घरों अथवा ऑफिस में प्रयोग किया जाता है। सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में मुख्य रूप से MS-DOS, Windows 95, Windows NT, Windows 2000, आदि ऑपरेटिंग सिस्टम आते हैं। बहुल उपयोगकर्ता (मल्टी यूजर)
बहु उपयोगकर्ता (मल्टी यूजर - Multi User)
वह ऑपरेटिंग सिस्टम जिसमे एक से अधिक उपयोगकर्ता एक ही समय मे काम कर सकते कर सकते है उसे मल्टी यूजर कहा जाता है। बहु-उपयोगकर्ता (मल्टी यूजर) ऑपरेटिंग सिस्टम को एक समय में एक से अधिक उपयोगकर्ताओं के लिए कंप्यूटर तक पहुँचने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आम तौर पर येह एक नेटवर्क आधारित सिस्टम होता है। ताकि कंप्यूटर को दूरस्थ रूप से उपयोग किया जा सके। मेनफ्रेम और मिनी कंप्यूटर मल्टी-यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करते हैं। ये ऑपरेटिंग सिस्टम सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में जटिल हैं। प्रत्येक उपयोगकर्ता को एक टर्मिनल प्रदान किया जाता है और ये सभी टर्मिनल मुख्य कंप्यूटर से जुड़े होते हैं। मल्टी यूजर) ऑपरेटिंग सिस्टम में, उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को संतुलित करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुख्य कंप्यूटर के संसाधनों को उपयोगकर्ताओं के बीच शेयर किया जाता है। मल्टी-यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में मुख्य रूप से Unix, Linux, Mainframes OS (IBM AS400) आते हैं।
कैरेक्टर यूजर इंटरफेस (Character User Interface) / कमांड लाइन इंटरफ़ेस (Command Line Interface)
कैरेक्टर यूजर इंटरफेस / कमांड लाइन इंटरफ़ेस यहा पर उपयोगकर्ता सिस्टम को कैरेक्टर की श्रृंखला के रूप मे कमाण्ड देता है। जब उपयोगकर्ता सिस्टम को कैरेक्टर / कमांड के द्वारा सूचना देता है तो इस ऑपरेटिंग सिस्टम को कैरेक्टर यूजर इंटरफेस / कमांड लाइन इंटरफ़ेस कहते हैं। कमांड लाइन इंटरफेस एक ऐसा प्लेटफॉर्म या माध्यम है जहां उपयोगकर्ता विभिन्न कमांड टाइप कर के सिस्टम को कमांड देना होता है, इसके लिए यूजर को सही सिंटैक्स का पूरा ज्ञान होना चाहिए। कमांड लाइन इंटरफ़ेस (Command Line Interface) कम मेमोरी का उपयोग करता है और जीयूआई की तुलना में तेजी से कार्य करता है। इसके मुख्य उदाहरण डॉस (DOS) एवं यूनिक्स (UNIX) ऑपरेटिंग सिस्टम हैं।
ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (Graphical User Interface)
ग्राफिकल यूजर इंटरफेस उपयोगकर्ताओं को ऑपरेटिंग सिस्टम या एप्लिकेशन के साथ कार्य करने में सक्षम बनाता है। ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (Graphical User Interface) उपयोगकर्ताओं की सुविधा के लिए बटन, विंडो, स्क्रॉलबार, विजार्ड और अन्य आइकन की सहायता से कम्प्यूटर पर कार्य करने की सुविधा देता है। इसे संक्षिप्त रूप से जीयूआई (GUI) कहा जाता है। इसका उपयोग करना एवं इसे सीखना आसान है। ग्राफिकल यूजर इंटरफेस में नेविगेशन के लिए माउस और कीबोर्ड का उपयोग किया जाता है। इसके मुख्य उदाहरण हैं - विंडोज (Windows), लिनक्स (Linux), मैक ओएस (Mac OS)।
ऑपरेटिंग सिस्टम के विभिन्न प्रकार | Various types of Operating System
प्रोसेसर शेड्युलिंग, मेमोरी मैनेजमेंट, फाइल मैनेजमेंट तथा इनपुट /आउटपुट मैनेजमेंट के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-
▷ बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System)
▷ मल्टीप्रोग्राम्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi-Programmed Operating System)
▷ टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System)
▷ नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम (Network Operating System)
▷ रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System)
▷ डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम (Distributed operating systems)
बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System)
कम्प्यूटर के शुरूआती दिनों में कम्प्यूटर सिस्टम में इनपु डिवाइस के रूप में कार्ड-रीडर्स तथा टेप ड्राइव्स एवं आउटपुट डिवाइस के प्रयोग हुआ करते थे। उस समय यूजर कम्प्यूटर सीधे-सीधे इन्ट्रैक्ट न कर, एक जॉब तैयार किया करते थे, जो प्रोग्राम डेटा ऑर कंट्रोल इनफार्मेशन का बना हुआ होता था। यूजर अपने जॉब को तैयार करने के पश्चात् कम्प्यूटर ऑपरेटर को सौंप देता था। इसी प्रकार दूसरा, तीसरा या अन्य यूजर अपने अपने जॉब तैयार कर कम्प्यूटर ऑपरेटर को सौंप देते थे। कम्प्यूटर ऑपरेटर सभी जॉब्स को एक साथ लोड कर उन्हें प्रोसेस करता था। कुछ मिनटों, घंटो या दिनों के पश्चात् जॉब्स प्रोसेस होकर आउटपुट देते थे। आउटपुट में प्रोग्राम के परिणाम के साथ साथ मेमोरी की अंतिम स्थिति भी होती थी, जो प्रोग्राम की डिबगिंग में सहायक होते थे।
मल्टीप्रोग्राम्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi-Programmed Operating System)
मल्टीप्रोग्राम्ड ऑपरेटिंग सिस्टम में एक से अधिक जॉब्स को मेमोरी में लोड किया जाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम इसमें से एक को एक्जक्यूट (Execute) करना शुरू करता है। जब कोइ जॉब एक्जक्यूट कर रहा होता है, तो ऑपरेटिंग सिस्टम उन सभी जॉब्स की एक क्यू / लाइन मेन्टेन करता है, जो सीपीयू की उपलब्धता के लिए प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। जब वर्तमान में एक्जक्यूट हो रहे जॉब में इनपुट-आउटपुट ऑपरेटिंग की आवश्यकता होती है, तो ऑपरेटिंग सिस्टम अगले जॉब की प्रोसेसिंग के लिए सीपीयू को उस जॉब पर स्थानान्तरित कर देते हैं। जॉब पहले वाले जॉब के इनपुट-आउटपुट आपरेशन समाप्त होता है, तब ऑपरेटिंग सिस्टम पुनः इसे क्यू में रख देता है ताकि जब सीपीयू उपलब्ध हो तो इसकी बाकी प्रोसेसिंग पूरी की जा सके। इस प्रकार ऑपरेटिंग सिस्टम सीपीयू के कंट्रोल को एक जॉब से दूसरे जॉब पर स्थानान्तरित करता रहता है। परिणामस्वरूप सीपीयू कभी भी आइडल स्थिति में नहीं रहता है।
टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System)
टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम प्रत्येक यूजर के लिए एक क्रम में सीपीयू समय (CPU Time) को एक समान प्रदाय (Allocate) करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा प्रत्येक यूजर को सीपीयू द्वारा दिया जाने वाला समय टाइम-स्लाइस कहलाता है। यह टाइम-स्लाइस, 5 से 100 मिलीसेकण्ड्स तक का होता है। टाइम-शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम में उचित रिस्पॉन्स टाइम को प्राप्त करने के लिए जॉब्स को मेन मैमोरी से डिस्क में और डिस्क से मेन मैमोरी में स्वैप करने की आवश्यकता होती है। वर्चुअल मेमोरी द्वारा यह कार्य किया जाता है। अतः वर्चुअल मेमोरी मेथड द्वारा इस प्रकार के जॉब्स को प्रोसेस किया जाता है, जिनका साइज फिजिकल मेमोरी से बड़ा होता है।
टाइम-शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम, जिसे मल्टीटास्किंग ओएस के रूप में भी जाना जाता है, किसी विशेष कार्य के लिए समय आवंटित करके और कार्यों के बीच बार-बार स्विच करके काम करता है। बैच सिस्टम के विपरीत, टाइम-शेयरिंग सिस्टम उपयोगकर्ताओं को सिस्टम में अपना काम एक साथ पूरा करने की अनुमति देता है। यह प्रतिक्रिया समय को कम करने के लिए कई उपयोगकर्ताओं को विभिन्न टर्मिनलों में वितरित करने की अनुमति देता है।
नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम (Network Operating System)
नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम एक सर्वर पर स्थापित होते हैं जो उपयोगकर्ताओं (Users) को डेटा और एप्लीकेशन को पर कार्य करने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह ऑपरेटिंग सिस्टम उपयोगकर्ताओं को फाइलों और उपकरणों जैसे प्रिंटर, सुरक्षा सॉफ्टवेयर और अन्य अनुप्रयोगों तक पहुंचने और शेयर करने में सहायता करता है। नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम में केंद्रीकृत सर्वर (Central Server) से कार्य में तेजी एवं स्थिरता के साथ साथ, सर्वर के माध्यम से सुरक्षा उपाय आसानी से किए जा सकते हैं। नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम में नई तकनीकों को अपग्रेड करना आसान होता है।
रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System)
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम की प्रक्रिया बहुत ही तीव्र गति से होती है। रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग तब किया जाता है जब कम्प्यूटर के द्वारा किसी कार्यविशेष का नियंत्रण किया जा रहा होता है। इस प्रकार के प्रयोग का परिणाम तुरंत प्राप्त होता है। इस तकनीक के द्वारा कम्प्यूटर का कार्य लगातार डाटा प्राप्त करना उनकी गणना करना, मेमोरी मे उन्हे व्यवस्थित करना तथा गणना के परिणाम के आधार पर निर्देश देना होता है।
रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में इनपुट, प्रोसेसिंग और रिस्पान्स के बीच कम समय लगता है। यह सिस्टम उन कार्यों के लिए उपयोगी जो अत्यधिक संवेदनशील हैं और जिसमें परिशुद्धता की आवश्यकता है। इन कार्यों में मिसाइल सिस्टम, मेडिकल सिस्टम या एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम शामिल हैं। रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम या तो हार्ड रीयल-टाइम सिस्टम या सॉफ्ट रीयल-टाइम सिस्टम हो सकते हैं।
डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम (Distributed operating systems)
डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम (Distributed operating systems) प्रणाली संचार लाइनों या एक साझा नेटवर्क (Common Network) के माध्यम से एक दूसरे के साथ संचार करने वाले स्वायत्त लेकिन परस्पर जुड़े कंप्यूटरों पर आधारित है। प्रत्येक स्वायत्त प्रणाली का अपना प्रोसेसर होता है जो आकार और कार्य में भिन्न हो सकता है। एक डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम वास्तविक समय में कई अनुप्रयोगों और कई उपयोगकर्ताओं को सेवा प्रदान करता है। वे रिमोट (दूर से) काम करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम उपयोगकर्ताओं के बीच डेटा के तेजी से आदान-प्रदान की अनुमति देते हैं। डेटा प्रोसेसिंग का कार्य इस सिस्टम में बहुत तेजी से होता है। इससे होस्ट कंप्यूटर पर लोड को कम किया जा सकता है। डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम स्केलेबिलिटी (Scalability) बढ़ाते हैं क्योंकि नेटवर्क में अधिक सिस्टम जोड़े जा सकते हैं।
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